सार्वजनिक व्यय का अर्थव्यवस्था के परिपेक्ष्य में एक अध्ययन
डॉ. बबिता वैदिक
उद्देश्य: सार्वजनिक व्यय का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव की समीक्षा करना।
प्रक्रिया: जब सार्वजनिक व्यय से लोगों की क्रय शक्ति में वृद्धि होती है तो इससे कुछ लोग कार्य करने की इच्छा कम हो जाती है। वह लोग सोचते हैं कि सामान्य जीवन स्तर के अनुरूप उनके पास पर्याप्त आय हो गई तथा उन्हें और अधिक कार्य करने की जरूरत नहीं है। जिससे सार्वजनिक व्यय का कार्य करने की इच्छा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है वास्तव में अधिकांश लोग अपने वर्तमान जीवन स्तर से संतुष्ट नहीं होते और वह अपने जीवन स्तर को और अधिक ऊंचा बनाना चाहते हैं तथा उनके कार्य करने की इच्छा समाप्त नहीं होती है इसका प्रभाव यह भी होता है कि वास्तविक व्यय की बचत करने की इच्छा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । तथा सामान्य रूप से सार्वजनिक व्यय से मिलने वाला संभावित लाभ का कार्य करने एवं बचत करने की इच्छा पर अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। सार्वजनिक व्यय के द्वारा धनी एवं गरीब के मध्य व आय के वितरण में व्याप्त असमानता को दूर किया जा सकता है। अमीरों पर प्रगतिशील दर से करारोपण करके उससे प्राप्त धन को गरीबों के कल्याण पर व्यय किया जाता है प्रोफ़ेसर पीगू का मत है कि "कोई भी कार्य जो गरीबों की वास्तविक आय के कुल भाग में वृद्धि करता हो सामान्यता आर्थिक कल्याण में वृद्धि करता है "समाज की बढ़ती विषमता को दूर करने का कार्य करारोपण तथा सार्वजनिक व्यय द्वारा पूरा किया जा सकता है।
परिणाम: प्रोफेसर जे.के.मेहता के शब्दों में सार्वजनिक व्यय एक दो धार वाला अस्त्र है। यह समाज की बहुत भलाई कर सकता है,लेकिन यदि यह अबुद्धिमतापूर्ण ढंग से किया जाए, तो बहुत हानि भी पहुंचा सकता है।
डॉ. बबिता वैदिक. सार्वजनिक व्यय का अर्थव्यवस्था के परिपेक्ष्य में एक अध्ययन. Int J Res Finance Manage 2022;5(2):222-225. DOI: 10.33545/26175754.2022.v5.i2c.172